सोना पत्ती



"अश्मन्तक महावृक्ष महादोषनिवारण ।

इष्टानां दर्शनं देहि कुरु शत्रुविनाशनम् ।।

हे अश्मंतक (अप्टा , सोना पत्ती ) के वृक्ष , आप समस्त बुराइयों को दूर करने वाले हो |  मेरे मित्र सदैव मेरे निकट रहें और मेरे शत्रुओं का नाश हो | "

"वृक्ष धरा का  आभूषण हैं" इसका अलंकारिक अर्थ से तो हम सभी परिचित हैं किन्तु इसको अक्षरशः चरितार्थ करने वाली परंपरा को मैंने पुणे , महाराष्ट्र में दशहरे की संध्या को देखा जब लोग अप्टा के पत्रों को स्वर्ण की तरह एक दुसरे को दे रहे थे रहे थे | 

यही सुन्दर परम्पराएं मनुष्य को प्रकृति से बांधे रखती हैं | और हम मनुष्यों ने सुन्दर कथाओं में गूथकर इन परम्पराओं को सदा के लिए अमर कर दिया है | 

एक पौराणिक कथा के अनुसार अपने गुरू वर्तन्तु 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की गुरू दक्षिणा देने के लिए महर्षि कौत्स मदद मांगने महाराज रघु के पास गए, महाराज रघु ने कुछ दिन पहले ही एक महायज्ञ करवाया था, जिसके कारण खजाना खाली हो चुका था, कौत्स ने राजा से स्वर्ण मुद्रा की मांग की तब उन्होंने तीन दिन का समय मांगा।राजा ने ने धन जुटाने के लिए स्वर्गलोक पर आक्रमण करने का विचार किया|  राजा के इस विचार से देवराज इंद्र घबरा गए और कोषाध्याक्ष कुबेर से रघु के राज्य में स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करने का आदेश दिया, इंद्र के आदेश पर रघु के राज्य में कुबेर नेअप्टा वृक्ष के पत्रों को स्वर्ण में बदल कर स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करा दी।

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक परंपरा के अनुसार जब मराठा योद्धा युद्ध के उपरान्त विजयी होकर लौटते थे तो अपने कुल की स्त्रियों के शत्रुओं से लुटे गए आभूषण उपहार स्वरुप प्रदान करते थे | महाराष्ट्र में इसी परंपरा की स्मृति में दशहरे के दिन अप्टा वृक्ष की पत्तियां एक दुसरे को उपहार स्वरुप दी जाती हैं | 

परम्पराएं सीमाओं में बढ़कर नहीं रहती और वो देशकाल को भेदकर कभी उसी रूप में और कभी बदले हुए स्वरुप में प्रकट  होती हैं |  पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दशहरे के दिन एक दुसरे को उपहार स्वरुप पान देने की परंपरा है जहाँ वृक्ष की पत्ती चाहे अप्टा  की हो या पान की पान की , एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | 


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