सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज

"इतिहास  के साथ अबसे अजीब बात ये है की हम जानते हैं की वो होता तो है लेकिन हमें उसे खोजना पड़ता है | कभी जनश्रुतियों में , कभी लोकगीतों में , कभी लोगों की स्मृतियों में और कभी जमीन की परतों में |" 

मेरा ये लेख कोई  ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं है , और न ही सिंधु घाटी सभ्ययता को समझने समझाने  का कोई प्रयास | ये एक जिज्ञासु जीव का अपने इतिहास को समझने और उसको खोजने का रोमांच का प्रतिफल है जो मैं आपसे साझा करना चाहता हूँ |  

बात १० फ़रवरी २०१७ के आस पास की है , जब एक दिन मैं अपने फेसबुक के पैन पलट रहा था तो एक पोस्ट ने मेरा ध्यान खींचा | वो पोस्ट एक प्रदर्शनी के बारे में थी जो मुंबई के क्षत्रपति शिवजी महाराज वास्तु संग्रहालय में लगी हुई थी - "India and the World: A History in Nine Stories" | 
मैं उस प्रदशनी का विवरण उसी के वेसीते से आपके सामने रखता हूँ  जो आप प्रदर्शनी की वेबसाइट (https://www.indiaandtheworld.org/)  पर देख सकते हैं -
"India and the World: A History in Nine Stories showcased some of the most important objects and works of art from the Indian subcontinent in dialogue with iconic pieces from the British Museum collection. The exhibition brought together around 200 objects not only from the collections of the British Museum, London; CSMVS, Mumbai; and National Museum, New Delhi but from around 20 museums and private collections across India. It highlighted the strong connections India has shared historically with the rest of the world, promoting an exchange of ideas and influences that have helped create a global culture."
इतिहास और दर्शन में मेरी हमेशा से रूचि  रही है | तो फिर क्या था , मैंने अपनी पत्नी रश्मि और बेटी सोमा के साथ मुंबई जाके प्रदर्शनी देखने का कार्यक्रम बना लिया |  
 वहां जा कर  मुझे जो अनुभव हुआ उसे शब्दों में बांधना बहुत मुश्किल है | पर ऐसा कोई भाव नहीं है नहीं है जो तुलसीदास ने राम चरित मानस की चौपाइयों में नहीं बाँधा | तो मैं "गिरा अनयन , नयन बिनु वाणी" वाला भाव लिए क्षत्रपति शिवजी महाराज वास्तु संग्रहालय के गलियारों में घंटों तक घूमता रहा | और उस दिन मुझे अनुभव हुआ की आपका इतिहास केवल आपका अपना नहीं होता , वो सांझा होता है |  और केवल अपने इतिहास को लेकर महानता भाव एक बहुत ही मूर्खतापूर्ण विचार है | क्यों की इतिहास सांझा होता है और वो समन्वय के साथ की आगे बढ़ता है | धरती के दो छोरों पे पनपती हुई तो दो सभ्यताएं एक ही समय उन्नति के एक ही धरातल पर हो सकती हैं भले ही वो दोनों एक दुसरे से नितांत अपरचित हों |
संग्रहालय के अंतिम गलियारे से गुजरते हुए उसकी कोई याद सहेज कर रखने की इच्छा से मैं गलियारे के अंतिम छोर पर बानी हुई शाप में घुसा और वहां राखी हुई एक वस्तु ने मुझे बाँध लिया |  वो एक हड़प्पन मुद्रा थी | 
इसका विवरण आप वेबसाइट पर देख ससकते हैं  - https://www.indiaandtheworld.org/2-first-cities

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