तितली का सपना

कुछ बातें आपके मन मैं घर कर लेती हैं | वो भले ही आपको हमेशा याद ना हों लेकिन वो अंदर ही कहीं छुपी बैठी होती हैं और गाहे बगाहे कही , सुनी, पढ़ी या देखि जा रही बातों के पीछे से पीछे से झांकने हैं | 

तितली का सपना एक ऐसा ही दृष्टान्त है जो मैंने जो मेरे मन में बैठा है  | अब तो मुझे याद भी नहीं कि मैंने इसे कहाँ पढ़ा या  सुना था |  तो खैर नहीं है क्यों की वो तो जुआंग्जी का सपना था या  था , या यूँ कहें की यही तो पता नहीं है | 

तो दृष्टान्त ऐसा है की जुआंग्जी  जो कि ३०० ईसा पूर्व के आस पास हुए एक चीनी दार्शनिक थे कहत हैं कि -

एक बार उन्होंने एक सपना देखा कि वे एक तितली हैं और यहाँ और वहाँ लहराते हुए उड़ रहे हैं। सपने में वे यह भूल गए की वे एक आदमी या व्यक्ति विशेष हैं। उन्हें लगा की वे एक तितली हैं। अचानक, वे जाग गए और अपने आपको बिस्तर पर एक व्यक्ति के रूप में पाया। लेकिन इसके बाद उन्होंने खुद के बारे में सोचा, "मैं एक आदमी हूँ जो एक तितली होने के बारे में सपना देख रहा था, या मैं अब एक तितली हूं जो अब एक आदमी होने के बारे में सपना देख रहा हूँ?"

“Once upon a time, I dreamt I was a butterfly, fluttering hither and thither, to all intents and purposes a butterfly. I was conscious only of my happiness as a butterfly, unaware that I was myself. Soon I awaked, and there I was, veritably myself again. Now I do not know whether I was then a man dreaming I was a butterfly, or whether I am now a butterfly, dreaming I am a man.”

― Zhuangzi, The Butterfly as Companion: Meditations on the First Three Chapters of the Chuang-Tzu

ये दृष्टान्त इसलिए  मुझे याद रह गया  पुनरावृत्ति बहुत सारी चीजों में देखी मसलन द मैट्रिक्स फिल्म का एक किरदार मॉर्फिअस जब कहता है -
"Have you ever had a dream, Neo, that you were so sure was real? What if you were unable to wake from that dream? How would you know the difference between the dream world and the real world?"
तो यह तितली के उस दृष्टान्त सपने की पुनरावृत्ति ही तो है | 

"सत हरि भजन जगत सब सपना" कह लीजिये या "ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या" दोनों ही जगत को सपना ही बताते हैं | 









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