सलाम बॉम्बे और भगती हुई दुनिया

 



शहरों का अपना मिज़ाज होता है | मिज़ाज होता है उनकी सुबह का,उनकी दुपहरी का और उनकी उनकी शामों का|  
कुछ शहरों में सुबह देर से होती  है और देर तक अलसायी हुई बालकनी की धुप में बैठी रहती हैं | 
कुछ शहरों में सुबह जल्दी से उठकर चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पकड़ लेती है | 
और शहरों जैसे बनारस में सुबह मुँह अँधेरे उठकर घाटों से होकर मंदिर का रास्ता पकड़ लेती है | 


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