ईरेटोस्थीनस की छलनी और सूचना का सत्य


सूदूर अंतरिक्ष  गहराइयों में  पृथ्वी से बहुत  प्रकाश वर्षों दूर बुद्धिमान प्राणियॉं का  ग्रह था |  वो हमसे बुद्धिमान  थे इसका कोई प्रमाण तो नहीं लेकिन पृथ्वी वासियों  हाल की बेवकूफियों को देख कर वैसे  किसी प्रमाण की आव्यशकता  लगती | परन्तु जो बिल वाटरसन कहा है  - “The surest sign that intelligent life exists elsewhere in the universe is that it has never tried to contact us.” उसको मानें तो वो बहुत बुद्धिमान भी नहीं थे | 

वैसे उनका उद्देश्य दूसरे ग्रहों पर अधिकार जमाना नहीं था , वो दूसरे ग्रहों की  ग्रहों की खोज में निकले तो एक उद्देश्य से कि उनको  ज्ञान का संग्रहण करके वो अपने ग्रह को उन्नत बना सकें | 

सुदूर अपरिचित आकाशगंगाओं से होकर अनेकानेक ग्रहों को जानते समझते उनके ज्ञान के स्रोतों का अध्ययन करते हुए आखिर वो पृथ्वी तक पहुंचे | 

पृथ्वी पर आने बाद उनकी सबसे बड़ी समस्या थी ज्ञान के उस स्रोत की खोज करना जिससे वो पृथ्वी के ज्ञान का दोहन कर सकें | और परिणाम स्वरुप उनका परिचय इंटरनेट से हुआ | 

इंटरनेट खोज  सूचना के प्रचार-प्रसार और आदान -प्रदान के लिए हुई थी | अगर आप  इंटरनेट के रोचक इतिहास में रूचि रखते हैं तो आप ये पढ़ सकते हैं - https://www.theguardian.com/technology/2016/jul/15/how-the-internet-was-invented-1976-arpa-kahn-cerf

और पहली वेबसाइट यहाँ देख सकते हैं - http://info.cern.ch/hypertext/WWW/TheProject.html  

(Tim Berners-Lee, Inventor of the Web, poses in front of the first World Wide Web Server. (Credit: SEBASTIAN DERUNGS/AFP/Getty Images))

उनके पास एक बहुत शक्तिशाली यन्त्र था जिसे आप कंप्यूटर कह  सकते हैं जो ग्रहों के ज्ञान को आत्मसात करके उनके सत्त्व को अपने ग्रह के उपयोग के लायक बनाता था | 

उस यंत्र ने पृथ्वी के ज्ञान का विश्लेषण प्रारंभ किया | धीरे धीरे क्षण दिनों  दिन महीनों  लगे | वह यन्त्र जो दूर ग्रहों  कार्य  एक दो दिनों  लेता था , जब इतना समय लगाने लगा तो उनको बहुत  आश्चर्य हुआ | उन्होंने बहुत सारे बहुत सारे ग्रह देखे थे जो पृथ्वी से बहुत उन्नत थे फिर पृथ्वी पर इतना समय लगने का कोई कारण उनकी समझ में नहीं आ रहा था | तो उन्होंने उस यन्त्र से ही पूछना उचित समझा | 

 कारण यह था की सूचना अधिकता ने उसकी वैधता को समाप्त  कर दिया था | अब वहां ज्ञान तथ्यों पर नहीं किन्तु मतों पर आधारित था और उसमे सत्य क्या है यह जानना अब असंभव हो चला था | किसी भी तथ्य के पक्ष में जितने पन्ने थे उतने ही विपक्ष में | सूचना की वैधता और उपयोगिता समाप्त हो चली थी | 

परिणाम स्वरुप हज़ारों वर्षों से मानव ने जो ज्ञान अर्जित किया वह धीरे धीरे भ्रम में बदल चुका था | और उसकी उपयोगिता समाप्त हो चली थी | 

किन्तु इस बात ने उन परग्रहियों को इस बात से अवगत करा दिया की बिना कसौटी पर कसे हुए तथ्यों

का कोई मूल्य नहीं और उनकी ज्ञान संग्रहण की ये रीत शायद उनका हाल अंततः पृथ्वी की तरह कर देगी | 

इसलिए कोरे तथ्यों को तर्क और प्रायोगिकता की चलनी से छान कर ही उपयोग के लायक बनाया जा सकता है | 

और वह परग्रही अब अपने ग्रह की ओर वापस उड़ चले | 

ठीक वैसे ही जैसे ईरेटोस्थीनस ने अंकों को चलने से छान कर प्राइम नंबर्स या अभाज्य संख्याओं को खोजने का तरीका सुझाया | 




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